
1 मई, 1960 से पूर्व यह महासू जिले का एक भाग और उससे पहले रामपुर बुशहर रियासत की एक तहसील थी । प्राचीन समय में इसे बुशहर-किन्नौर राज्य और किन्नर देश से भी जाना जाता था जिसका पश्चिम हिमालय के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान था । प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों, वेदों और पुराणों, रामायण-महाभारत तथा साहित्यिक कृतियों में इसे किन्नर देश ही माना गया है जिसके अनेकों उद्धरण मौजूद हैं । यह देश पूर्व में गंगा यमुना तथा पश्चिम में चन्द्रभागा नदियों के उद्गमों तक विस्तृत था । इसका प्रमाण सुतपट्टिक के विमान वत्थु जो ईसा पूर्व द्वितीय-तृतीय सदी का ग्रन्थ माना जाता है, में दर्ज इन पक्तियों से मिलता है-चन्द्रभागा नदी तीने अहोसिं किन्नर तदा-। इससे स्पष्ट है कि चन्द्र भागा जिसे चनाव से भी जाना जाता है के किनारे किन्नर वास करते थे । किन्नर देव योनियों की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए हैं जिसके अनेक उदाहरण मौजूद हैं ।
कहाँ और कैसे हुई किन्नर की उत्पत्ति:
किन्नौर हिमाचल प्रदेश का अति सुन्दर और समीमावर्ती जनजातीय जिला है। इसके पूर्वी छोर में तिब्बत, पश्चिम में कुल्लू व लाहंल स्पिति, दक्षिण-पश्चिमी छोर में शिमला जिला और दक्षिण में उत्तर प्रदेश का उत्तरकाशी क्षेत्र और जिला शिमला का रोहड़ू क्षेत्र स्थित है ।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान किन्नौर का नामकरण किन्नर देश तथा वहां के प्राचीन निवासी किन्नर देव योनि से ही लिया गया है । किन्नौर के कई दूसरे नाम कनौर, कनावर, कुनावुर तथा कनौरिंडं भी बताए गए हैं जो किन्नर से ही अपभ्र्रंशित हुए लगते हैं । इस जिले का क्षेत्रफल 6,553 वर्ग किलोमीटर तथा 1961 की जनगण केअनुसार जनसंख्या 40 हजार 980 है जो वर्तमान अर्थात 2001 की जनगणना के अनुसार 78 हजार 334 है। इस क्षेत्र के तकरीबन सभी गांव 1500 मीटर से लेकर 3500 मीटर तक की ऊंचाई पर बसे हैं जबकि पर्वतीय चोटियां 5000 मीटर से 7000 मीटर तक की ऊंचाई तक चली गई है। यहां की सांस्कृतिक और देव परम्पराएं भी अति प्राचीन हैं। यह जिला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यटन की दृष्टि से भी अति महत्वपूर्ण है। वर्ष 1991 से पहले सीमावर्ती तथा इन्नरलाइन होने के कारण भारतीय पर्यटकों को इन्नर लाइन परमिट लेकर ही प्रवेश मिलता था जबकि विदेशी पर्यटकों का प्रवेश वर्जित था लेकिन पर्यटन को महत्व देने की दृष्टि से भारत सरकार ने 13-23-1991 को इस क्षेत्र को पूरी तरह विदेशी तथा देशी पर्यटकों के भ्रमण के लिए खोल दिया है। हिन्दुस्तान तिब्बत मार्ग अधिकांशतः इसी जिले से होकर कौरिक पहुंचता है ।
महाभारत के दिग्विजय पर्व में अर्जुन का किन्नरों के देश में जाने का वर्णन आता है। ‘पराक्रमी वीर अर्जुन धवलगिरि को लांघ कर द्रुमपुत्र के द्वारा सुरक्षित किम्पुरूष देश में गए जहां किन्नरों का वास था। उन्होंने क्षत्रिय का भारी संग्राम के द्वारा विनाश करके उस देश को जीता था। चन्द्र चक्रवती ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘लिटरेरी हिस्टरी आफ एन्शियंट इंडिया’ में लिखा है कि किन्नर कुल्लू घाटी, लाहुल और रामपुर में सतलुज के पश्चिमी किनारे पर तिब्बत की सीमा के साथ रहते हैं। अजन्ता के भित्ति चित्रों में गुहृयकों किरातों तथा किन्नरों के चित्र भी हैं। इन चित्रों का ऐतिहासिक महत्व हैं जो ईसा की तृतीय से अष्टम शताब्दी के मध्य की धार्मिक तथा सामाजिक झांकि प्रस्तुत करते हैं। किन्नरों के वर्णन बौद्ध ब्रन्थों में भी आते हैं। चन्द किन्नर जातक में बोधिसत्व के हिमालय प्रदेश में किन्नर योनि में जन्म लेने की बात कही गयी है। इस सन्दर्भ में इस ग्रन्थ में किन्नर और किन्नरियों की कई कथाएं वर्णित है।
हिमाचल में दोबारा वर्तमान किन्नर विवाद उस समय उठा जब मधुर भंडारकर ने अपनी फिल्म ‘ट्रैफिक सिग्नल’ के रलीज होने से पहले कई हिन्दी के न्यूज चैनलों में साक्षात्कार देते हुए यह कहा कि उन्होंने फिल्म में ‘किन्नरों’ से भी अभिनय करवाया है। किन्नरों से उनका तात्पर्य ‘हिजड़ों’ से था। न्यूज चैनलों के दर्शक लाखों-करोड़ों में होते हैं इसलिए जो इस बात से अपरिचित थे उन्हें भी यही लगा कि किन्नर हिजड़ों को ही कहा जाता होगा। वर्ष 2000 की अपेक्षा यह विवाद अत्यन्त मुखर और तीव्र था, अतः प्रदेश सरकार ने मधुर भंडारकर की फिल्म को आंशकि रूप से प्रतिबंधित कर दिया। विधान सभा शुरू हुई तो दिनांक 23-02-2007 को दोबारा विधान सभा में यह मुद्दा उठा और मुख्य मन्त्री श्री वीरभद्र सिंह ने सदन में आश्वासन दिया कि इस शब्द के हिजड़ों के लिए हो रहे प्रयोग से किन्नौरवासी आहत हुए हैं। इसलिए यह मामला केन्द्र सरकार से उठाया जाएगा।
इतने महत्वपूर्ण जनजातीय जिले कि निवासियों को इन दिनों एक बड़े सांस्कृतिक संकट से दो-चार होना पड़ रहा है। यह संकट ‘किन्नर’ शब्द के हिजड़ा समुदाय के लिए प्रयोग होने से खड़ा हुआ है। हिमाचल प्रदेश में ‘किन्नर’ शब्द पर विवाद उस समय उठा जब वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश के जिला शहडोल से इस समुदाय की सुश्री शबनम मौसी विधायक चुनी गई। इसके बाद कुछ अन्य क्षेत्रों से भी इस समुदाय के लोग राजनीति में आने शुरू हुए। प्रिंट और इलैक्ट्रोनिक मीडिया या किन्हीं बुद्धिजीवियों ने राजनीति में हिजड़ों के प्रवेश के बाद उन्हें किसी बढ़िया नाम से सम्बोधित करने की दृष्टि से उन्हें ‘किन्नर’ नाम दे दिया और यह शब्द एक अनुचित अर्थ में प्रयुक्त होना शुरू हो गया। हिमाचल में इसका विरोध स्वभाविक था। यह विरोध प्रमुखता से समाचार पत्रों में छपा और अप्रैल 2001 में विधान सभा में भी पहुंच गया जहां इसकी निंदा हुई और एक प्रस्ताव भी पारित हुआ कि किन्नर, किन्नौर की संविधान में मान्यता प्राप्त जनजाति है इसलिए हिजड़ों को किन्नर कहना यहां के निवासियों का अपमान है। लेकिन किन्नौरवासियों की विडंबना यह रही कि उसके बाद इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई।
मधुर भंडारकर से कई बार हमारी बात हुई तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि ‘हिजड़ों को किन्नर न कहा जाए तो क्या कहें। इस शब्द का प्रयोग तो मीडिया पहले से कर रहा है।’ मधुर भंडारकर को यह समझाने का प्रयास किया गया कि इस बात का पहले से विरोध हो रहा है लेकिन अब जबकि उन्होंने अपनी फिल्म रलीज होने से पहले न्यूज चैनलों पर बार-बार इसका प्रयोग हिजड़ों को किया है इसलिए उससे हिमाचल में बवाल मच गया है। किन्नौर निवासी इससे खासे नाराज है और अपमानित महसूस कर रहे हैं।
बजाए इसके कि मधुर भंडारकर हिमाचल और किन्नौरवासियों की भावना की कद्र करते और इस भूल के लिए क्षमा याचना मांगते उन्होंने मुम्बई में अपने साथी फिल्म निर्माताओं के साथ एक प्रैस-संगोष्ठी का आयोजन किया जिसमें जानेमाने फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट, अशोक पंडित, सुधीर मिश्रा के साथ कई फिल्मी हस्तियां शामिल थीं। उन्होंने हिमाचल में फिल्म के प्रतिबंध को लेकर प्रदेश सरकार पर अपना गुस्सा उड़ेला तथा इस विरोध को हल्के-फुलके ढंग से लेते हुए मधुर भंडारकर की बात का समर्थन किया कि हिजड़ों को किन्नर न कहें तो क्या कहें। इसको लेकर उन्होंने हिमाचल सरकार, हिमाचल प्रदेश व किन्नौर वासियों के साथ हमारी संस्कृति का भी अपमान किया। इस बात का प्रमाण एक दैनिक में दिनांक 14 फरवरी, 2007 को प्रकाशित फिल्म निर्देशक अशोक पंडित का लेख है।
पौराणिक ग्रन्थों और साहित्य में किन्नरः
पौराणिक ग्रन्थों, वेदों-पुराणों और साहित्य तक में किन्नर हिमालय क्षेत्र में बसने वाली अति प्रतिष्ठित व महत्वपूर्ण आदिम जाति है जिसके वंशज वर्तमान जनजातीय जिला किन्नौर के निवासी माने जाते हैं। संविधान में भी इन्हें किन्नौरा और किन्नर से संबोधित किया गया है। किन्नौर वासियों को जब जनजाति का प्रमाण पत्र दिया जाता है तो उसमें स्पष्ट लिखा होता है – ‘the people of Kinnaur District belongs to Kinnaura or Kinnar Tribe which is recognized as Scheduled Tribe under the Scheduled Tribes List(modification) order 1956 and the State of Himachal Pradesh Act, 1970’.
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किन्नर हिमालय में आधुनिक कन्नौर प्रदेश के पहाड़ी, जिनकी भाषा कन्नौरी, गलचा, लाहौली आदि बोतियों के परिवार की है।
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किन्नर हिमाचल के क्षेत्र में बसने वाली एक मनुष्य जाति का नाम है, जिसके प्रधान केन्द्र हिमवत् और हेमकूट थे। पुराणों और महाभारत की कथाओं एवं आख्यानों में तो उनकी चर्चाएं प्राप्त होती ही हैं, कांदबरी जैसे कुछ साहित्यिक ग्रन्थों में भी उनके स्वरूप, निवासक्षेत्र और क्र्रियाकलापों के वर्णन मिलते हैं। किन्नरों की उत्पत्ति में दो प्रवाद हैं। –एक तो चह कि वे ब्रह्मा की छाया अथवा उनके पैर के अंगूठे से उत्पन्न हुए हैं और दूसरा यह कि अरिष्ठा और कश्यप उनके आदिजनक थे। हिमाचल का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान निवाससस्थान था, जहां वे शंकर की सेवा किया करते थे। उन्हें देवताओं का गायक और भक्त माना जाता था और वे यक्षों और गंधवोर्ं की तरह नृत्य और गायन में प्रवीण होते थे। उनके सैंकड़ो गण थे और चित्ररथ उनका प्रधान अधिपति था।
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मानव और पशु अथवा पक्षी संयुक्त भारतीय कला का एक अभिप्रायं इसकी कल्पना अति प्राचीन है। शतपथ ब्राह्मण(7.4.2.32) में अश्वमुखी मानव शरीर वाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरूड़मुखी, मानवशरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है।
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संस्कृत ग्रन्थों में किन्नरी वीणा का उल्लेख हुआ है।
महा पंडित राहुल सांकृत्यायन ने किन्नौर जिसे वे प्रमाण के साथ प्राचीन ‘किन्नर देश’ मानते हैं, इस क्षेत्र की अनेक यात्राएं की हैं और कई पुस्तकें लिखी हैं। किन्नर देश और किन्नर जाति का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व समझने के लिए उनकी बहुचर्चित पुस्तकें ‘किन्नर देश’ और ‘हिमाचल’ है। उनके अनुसार ‘यह किन्नर देश है। किन्नर के लिए किंपुरूष शब्द भी संस्कृत में प्रयुक्त होता है, अतः इसी का नाम किंपुरूष या किंपुरूषवर्ष भी है। किन्नर या किंपुरूष देवताओं की एक योनि मानी जाती थी। किन्नर देशियों को आजकल किन्नौर में किन्नौरा कहते है। पहले किन्नौर या किन्नर क्षेत्र बहुत विस्तृत था। कश्मीर से पूर्व नेपाल तक प्रायः सारा ही पश्चिमी हिमालय तो निश्चित ही किन्नर जाति का निवास था। चन्द्रभागा(चनाव) नदी के तट पर आज भी किन्नौरी-भाषा बोली जाती है। सुत्तपटिक के ‘विमानवत्थु(ईसापूर्व द्वितीय तृतीय सदी) में लिखा है-चन्द्रभागानदी तीरे अहोसिं किन्नर तदा-जिससे स्पष्ट है कि पर्वतीय भाग के चनाव के तट पर उस समय भी किन्नर रहा करते थे।’ डा० बंशी राम शर्मा ने ‘किन्नर लोक साहित्य’ पुस्तक लिखी है जो किन्नर पर पहला शोध ग्रन्थ हैं। इस पुस्तक में अनेक प्रमाण देकर यह सिद्ध किया गया है कि वर्तमान किन्नौर में रहने वाले निवासी किन्नर जाति से सम्बन्धित हैं। महाकवि भारवि ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ किरातार्जुनीय महाकाव्य के हिमालय वर्णन खण्ड(पांचवा सर्ग, श्लोक १७) में किन्नर, गन्धर्व, यक्ष तथा अप्सराओं आदि देव-योनियों के किन्नर देश में निवास होने का वर्णन किया है। वायुपुराण में महानील पर्वत पर किन्नरों का निवास बताया गया है। डी.सी.सरकार (Cultural History from the Vayu Purana, 1946, Page 81) के अनुसार किंपुरूष-किन्नर भी आदिम जातियां थीं जो हेमकूट में निवास करती थी। मत्स्य पुराण के अनुसार किन्नर हिमवान पर्वत के निवासी हैं। डॉ० कन्हैया लाल माणिक लाल मुन्शी के अनुसार किन्नर हिमाचल पदेश के एक क्षेत्र में रहते हैं। महिलाओं को किन्नरियां कहा जाता है जो बहुत सुन्दर होती हैं। उन्हें किन्नर कंठी भी कहा गया है। हरिवंश पुराण में किन्नरियों को फूलों तथा पत्तों से श्रृंगार करते हुए बताया गया है जो गायन और नृत्यकला में अति दक्ष होती है। भीम ने शांतिपर्व में वर्णन किया है कि किन्नर बहुत सदाचारी होते हैं उन्हें अन्तःपुर में भृत्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। कार्तिकेय नगर हमेशा किन्नरों के मधुरगान से गुंजायमान रहता है।
महाकवि कालीदास ने अपने अमर ग्रन्थ कुमार सम्भव (प्रथम सर्ग, श्लोक 11, 14) में किन्नरों का मनोहारी वर्णन किया है जिसका हिन्दी अनुवाद है–‘ जहां अपने नितम्बों और स्तनों के दुर्वह भार से पीड़ित किन्नरियां अपनी स्वाभाविक मन्दगति को नहीं त्यागतीं यद्यपि मार्ग, जिस पर शिलाकार हिम जम गया है, उनकी अंगुलि व एड़ियों को कष्ट दे रहा है।’ पुराणों में किन्नरों को दैवी गायक कहा गया है। वे कश्यप की सन्तान हैं और हिमालय में निवास करते हैं। वायुपुराण के अनुसार किन्नर अश्वमुखों के पुत्र थे। उनके अनेक गण थे और वे गायन और नृत्य में पारंगत थे। हिमालय में स्थित अनेक स्थानों पर किन्नरों के लगभग सौ शहर थे। वहां की प्रजा बड़ी प्रसन्न तथा समृद्धशाली थी। इन राज्यों के अधिपति राजा द्रुम, सुग्रीव, सैन्य, भगदत आदि थे जो बहुत शक्तिशाली माने जाते थे। किन्नरों का हिमालय के बहुत बड़े क्षेत्रों पर अधिकार था। किन्नौर के गेजेटियर में भी किन्नर का विस्तार से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उल्लेख किया गया है।
इसके अतिरिक्त अनेक विद्वानों और साहित्यकारों ने अपने शोधग्रन्थों, यात्रा-पुस्तकों, आलेखों और कविताओं में किन्नर देश और किन्नौर में रहने वाली किन्नर जनजाति का उल्लेख किया है। इनमें न केवल हिमाचल के विद्वान-लेखक शामिल है बल्कि देश-विदेश के लेखक भी हैं। पिछले दिनों किन्नौर निवासी शोधकर्ता व लेखक टेसी छेरिंग नेगी की दो पुस्तकें उल्लेखनीय है। पहली पुस्तक ”किन्नरी सभ्यता और साहित्य” दिल्ली साहित्य अकादमी ने प्रकाशित की है। हाल ही में उनकी दूसरी पुस्तक भी प्रकाशित हुई है जिसका शीर्षक है ”किन्नर देश का इतिहास”। इसका विमोचन मुख्यमन्त्री महोदय श्री वीरभद्र सिंह ने ठीक उसी दौरान किया जब मधुर भंडारकर की फिल्म पर प्रतिबंध लगा था। श्री शरभ नेगी की पुस्तक ”हिमालय पुत्र किन्नरों की लोक गाथाएं” किन्नर लोक गाथाओं पर पहली प्रमाणिक पुस्तक है। एस आर हरनोट ने भी अपनी पुस्तकों ”यात्रा-किन्नौर, स्पिति और लाहुल” तथा ”हिमाचल के मन्दिर और लोक कथाओं” में किन्नौर और किन्नर इतिहास तथा संस्कृति का विस्तार से उल्लेख किया है। हिमाचल के प्रसिद्ध लेखक मियां गोवर्धन सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ”हिमाचल प्रदेश का इतिहास” भी इस सन्दर्भ में एक प्रमाणिक ग्रन्थ है। वर्तमान में न केवल हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय बल्कि प्रदेश के बाहर स्थित जे०एन०यू स्थित कई दूसरे विश्वविद्यालयों में कई शोध छात्र किन्नर लोक गीतों, इतिहास और किन्नर लोक साहित्य पर शोध कर रहे हैं।
गलत सन्दर्भ और अर्थ में जाने-अनजाने जो लोग किन्नर शब्द का प्रयोग हिजड़ों के लिए कर रहे हैं उससे न केवल हिमाचल का विशेषकर किन्नौर और किन्नर जनजाति का अपमान हुआ है बल्कि उपरोक्त उल्लेखित पौराणिक ग्रन्थ और साहित्य भी कटघरे में आ गया है। मधुर भंडारकर की अज्ञानता ने नए सिरे से इस विवाद को जन्म दिया है। इतना ही नहीं जो छात्र किन्नर को लेकर किसी भी सन्दर्भ में शोध कर रहे हैं उन्हें इसके दंश से अपने मित्रों और लोगों के बीच अपमानित भी होना पड़ता है। जो इसके इतिहास से अनजान है वे उनसे पूछ ही लेते हैं कि ‘क्या यह शोध हिजड़ों पर हो रहा है ?”
मधुर भंडारकर ही इस विवाद में शामिल नहीं है बल्कि अब तो हिमाचल में भी दो-चार तथाकथित लेखक और समाजशास्त्री उनके साथ चलते दीख रहे हैं। पिछले दिनों एक अखबार में इसी तरह के एक समाजशास्त्री ने प्रदेश सरकार तथा तमाम उन लोगों पर जो इसका विरोध कर रहे हैं अच्छा खासा अपमानित किया है। उन्होंने इस विवाद के पीछे फिक्सिंग, प्रायोजित, सियासत और पब्लिस्टिी स्टंग जेसे आरोप भी मढ़ दिए हैं जो न केवल उपरोक्त ग्रन्थों और साहित्य का अपमान है बल्कि किन्नौर वासियों के साथ हिमाचल प्रदेश विधान सभा को भी गाली है।
मधुर भंडारकर की फिल्म के बहाने उनके कई न्यूज चैनलों को दिए साक्षात्कारों और मुम्बई में की गई प्रैस कान्फ्रैंस से इस विवाद ने नया रूप लिया है। हिमाचल वासी किसी भी कीमत पर अपने इतिहास और संस्कृति का इस तरह अपमान होते नहीं देख सकते। फिल्म निर्माता यह भूल जाते हैं कि उनकी फिल्में आमजन सबसे अधिक देखते हैं। मधुर भंडारकर को चाहिए तो यह था कि वह हिमाचल और किन्नौरवासियों का सम्मान करते हुए अपनी इस ऐतिहासिक भूल के लिए क्षमा मांगते लेकिन उन्होंने जिस तरह प्रदेश सरकार तथा किन्नौरवासियों का मजाक उड़ाया है उसके दृष्टिगत न केवल उनकी फिल्म हिमाचल में पूर्णतया प्रतिबन्धित होनी चाहिए बल्कि प्रदेश सरकार को भी उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए। क्योंकि इस विषय को हम किसी भी तरह हल्के ढंग से नहीं निपटा सकते क्योंकि यदि किन्नर शब्द स्थायी रूप से हिजड़ा समुदाय को मिल गया तो उसके परिणाम क्या होंगे इसका सहज ही अनुंमान लगाया जा सकता है।
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