चमार नहीं चँवर वंश —!
सनातन हिन्दू धर्म जिसे वैदिक धर्म अथवा हिन्दू धर्म कहा जाता है जहां वैदिक काल मे वर्ण ब्यवस्था थी कोई जाती नहीं थी कर्म के अनुसार कोई भी ब्राह्मण अनुसार शूद्र तथा कोई भी शूद्र कर्म से ब्राह्मण हो सकता था, एक समय था जब राजा नहीं था न राज्य था न कोई अपराध करता था न कोई दंड देने वाला था ऐसा हमारा पुरातन वैदिक काल था, महाभारत के पश्चात भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि भीष्म पितामह मृत सईया पर पड़े हैं उनसे उपदेश लेना चाहिए, भगवान कृष्ण सहित युधिष्ठिर वहाँ गये उन्होंने पितामह से पूछा कि हे पितामह जब राज्य नहीं था कोई राजा नहीं था तो समाज की ब्यवस्था कैसे चलती थी पितामह ने उत्तर दिया हे पुत्र–
”न राज्यम न राजाषित न दंडों न दंडिका”
उस समय न कोई राजा था न ही कोई दंड देने वाला था क्योंकि कोई अपराधी नहीं था, ऐसा समय वैदिक काल था, ऐसी समाज रचना हमारे पूर्वजों चमार ने बनाई थी गाँव के सभी आपस मे बहन- भाई के रूप मे रहते थे सभी एक दूसरे को चाचा- चाची, दादा- दादी एक परिवार जैसा गाँव, जिसमे कोई गलत दृष्टि नहीं कोई अराजकता नहीं सभी एक दूसरे के सहायक आदर करते थे आपस मे अपनत्व का भाव था ऐसे समाज की रचना।
संत रविदास चँवर वंश के राज़ा थे—-!
वे ‘स्वामी रामानन्द’ के शिष्य थे वे सिकंदर लोदी से पराजित हुए उनको काशी मे चमड़े के काम करने को बताया वे संत थे उन्होने स्वीकार किया लेकिन रामानन्द के द्वादश भगवत शिष्यों मे सर्वाधिक लोकप्रिय व शिष्य ‘संत रविदास’ के पास थे, सिकंदर लोदी को यह बरदास्त नहीं था उसने ‘सदन कसाई’ को संत शिरोमणि गुरु रविदास को मुसलमान बनाने हेतु भेजा लेकिन ”चढ़े न दूजों रंग” कुछ और हो गया सदन कसाई रामदास हो गया इस घटना को लेकर सिकंदर लोदी ने फरमान जारी किया की ये संत नहीं ये दोनों चांडाल हैं चांडाल, और इन्हे सदन कसाई सहित जेल मे डाल दिया भारत वर्ष के उनके सभी अनुयायियों ने कहा की जब उनके गुरु रविदास चांडाल हैं तो हम भी चांडाल है उन्हे अछूत घोषित किया गया हिन्दू समाज डर गया, इसी चांडाल का अपभ्रंश चमार हो गया उन्होने इस्लाम नहीं स्वीकार किया धर्म नहीं छोड़ा अछूत होना स्वीकार किया, आज हम समझ सकते हैं की संत रविदास के कितने अनुयाई रहे होंगे इसी प्रकार हमारे धर्म वीरों को पददलित किया गया ।
गुरु रविदास ने इन पंक्तियों मे हिन्दू चमार जाती कि धर्मपरायणता को चित्रित किया है ——
धर्म सनातन मानन हारे,
वेदशास्त्र हैं प्राण हमारे ।
पूजा रामकृष्ण चित लाई,
गुरु द्विज संत करो सेवकाई।।