मन्दिर का मार्ग

मन्दिर तक जाने के लिए वे यात्री जो उखीमठ का रास्ता अपनाते हैं, उन्हें अलकनंदा के बाद मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है।
इस मार्ग पर अत्यंत लुभावने और सुंदर नज़ारे देखने को मिलते हैं। आगे बढ़ने पर अगस्त्य मुनि नामक एक छोटा-सा क़स्बा पड़ता है, जहाँ से हिमालय की नंदाखाट चोटी के दर्शन होते हैं।
देवहिरया ताल
चोपता से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद ‘देवहिरया ताल’ भी पहुँचा जा सकता है, जो तुंगनाथ मन्दिर के दक्षिण दिशा में स्थित है। यह एक पारदर्शी सरोवर है।
इस सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब दिखायी देते हैं।
प्राचीन मन्दिरों के दर्शन
तुंगनाथ मन्दिर के प्रवेश द्वार पर चोपता की ओर बढ़ते हुए रास्ते में बांस के वृक्षों का घना जंगल और मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ता है।
चोपता से तुंगनाथ मन्दिर की दूरी मात्र तीन किलोमीटर ही रह जाती है।
चोपता से तुंगनाथ तक यात्रियों को पैदल ही सफर तय करना होता है। पैदल यात्रा के दौरान बुग्यालों की सुंदर दुनिया से साक्षात्कार करने का अवसर मिलता है।
इस दौरान भगभान शिव के कई प्राचीन मन्दिरों के दर्शन भी होते हैं। यहाँ से डेढ़ किलोमीटर की ऊँचाई चढ़ने के बाद ‘मून माउंटेन’ के नाम से प्रसिद्ध ‘चंद्रशिला’ नामक चोटी के दर्शन होते हैं।
लेकिन बाद में शिव ने अपने शरीर को बैल के शरीर के अंगों के रूप में पांच अलग-अलग स्थानों पर डाला, जहां पांडवों ने उनकी माफी और आशीषों की मांग करते हुए प्रत्येक स्थान पर भगवान शिव के मंदिरों का निर्माण किया।
तुंगनाथ को उस जगह के रूप में पहचाना जाता है जहां बाहू (हाथ) देखा गया था, कूल्हे केदारनाथ में देखा गया, रुद्रनाथ में सिर दिखाई दिया, उनकी नाभि और पेट मध्यमाहेश्वर में सामने आए और कल्पेश्वर में उनके जाट।
पौराणिक कथा में यह भी कहा गया है कि रामायण महाकाव्य के मुख्य प्रतीक भगवान राम, चंद्रशेला शिखर पर ध्यान लगाते हैं, जो तुंगनाथ के करीब है। यह भी कहा जाता है कि रावण ने यहां भगवान् शिव की तपस्या की थी।